अ+ अ-
|
मेरी कविताएँ शायद कागजी घोड़े हैं
या महज शब्दों की कलाबाजियाँ
कल्पना की महीन कोशिकाओं में
महसूस करता हूँ टीस
खोखले बयानबाजी से रचता हूँ संसार
कपाल की कठोर हड्डियों में कुशलता से
टाँकता हूँ संवेदनाओं के पैबंद
और इस तरह पृष्ठ के मध्य लिखता हूँ
हाशिए का दर्द...
|
|